हम ज़मीं की तरफ़ जब आए थे
आसमानों में रह गया था कुछ
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पानी था मगर अपने ही दरिया से जुदा था
ख़्वाबों की किर्चियाँ मिरी मुट्ठी में भर न जाए
हमारे मा-बैन
चराग़ हाथों के बुझ रहे हैं सितारा हर रह-गुज़र में रख दे
कोई शब ढूँडती थी मुझ को और मैं
मैं जो ठहरा ठहरता चला जाऊँगा
वो जो सर्फ़-ए-निगाह करता है
आसमाँ का सितारा न महताब है
मुझ में ख़ुद मेरी अदम-मौजूदगी शामिल रही
गरचे मैं सर से पैर तलक नोक-ए-संग था
तेरा ही निशान-ए-पा रहा हूँ मैं
कौन गुज़रा था मेहराब-ए-जाँ से अभी ख़ामुशी शोर भरता हुआ