कोई शब ढूँडती थी मुझ को और मैं
तिरी नींदों में जा कर सो गया था
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Gulzar
Parveen Shakir
Wasi Shah
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(628) Peoples Rate This
क़ल्ब-गह में ज़रा ज़रा सा कुछ
फ़ज़ा में हाथ तो उट्ठे थे एक साथ कई
वो रात नींद की दहलीज़ पर तमाम हुई
लम्स की शिद्दतें महफ़ूज़ कहाँ रहती हैं
ये राह-ए-तलब यारो गुमराह भी करती है
आने वाला तो हर इक लम्हा गुज़र जाता है
मैं छुपा रहूँगा निगाह-ओ-ज़ख़्म की ओट में
अपने सूखे हुए गुल-दान का ग़म है मुझ को
वो जो सर्फ़-ए-निगाह करता है
रेल की पटरी ने उस के टुकड़े टुकड़े कर दिए
कुछ और दिन अभी उस जा क़याम करना था
वो तवानाई कहाँ जो कल तलक आज़ा में थी