साल-ए-नौ आता है तो महफ़ूज़ कर लेता हूँ मैं
कुछ पुराने से कैलन्डर ज़ेहन की दीवार पर
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अपनी सारी काविशों को राएगाँ मैं ने किया
कभी मिली जो तिरे दर्द की नवा मुझ को
एक हंगामा बपा है मुझ में
ख़ला-ए-ज़ेहन के गुम्बद में गूँजता हूँ मैं
उसे भी जाते हुए तुम ने मुझ से छीन लिया
मैं साथ ले के चलूँगा तुम्हें ऐ हम-सफ़रो
आसमाँ एक सुलगता हुआ सहरा है जहाँ
समेट लो मुझे अपनी सदा के हल्क़ों में
शायद तुम भी अब न मुझे पहचान सको
मैं बिछड़ कर तुझ से तेरी रूह के पैकर में हूँ
आज आईने में ख़ुद को देख कर याद आ गया
ये मैं था या मिरे अंदर का ख़ौफ़ था जिस ने