रौशनी फैली तो सब का रंग काला हो गया
कुछ दिए ऐसे जले हर-सू अंधेरा हो गया
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Habib Jalib
Wasi Shah
Jaun Eliya
Gulzar
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(919) Peoples Rate This
कर्ब हरे मौसम का तब तक सहना पड़ता है
आने वाले हादसों के ख़ौफ़ से सहमे हुए
बहुत लम्बा सफ़र तपती सुलगती ख़्वाहिशों का था
मैं बिछड़ कर तुझ से तेरी रूह के पैकर में हूँ
जो ग़म में जलते रहे उम्र-भर दिया बन कर
साल-ए-नौ आता है तो महफ़ूज़ कर लेता हूँ मैं
ख़ला-ए-ज़ेहन के गुम्बद में गूँजता हूँ मैं
वो वक़्त आएगा जब ख़ुद तुम्ही ये सोचोगी
सरहद-ए-जिस्म से बाहर कहीं घर लिक्खा था
आप जिस रह-गुज़र-ए-दिल से कभी गुज़रे थे
अपनी सारी काविशों को राएगाँ मैं ने किया