ख़ला-ए-ज़ेहन के गुम्बद में गूँजता हूँ मैं
ख़ला-ए-ज़ेहन के गुम्बद में गूँजता हूँ मैं
ख़ुद अपने अहद-ए-गुज़िश्ता की इक सदा हूँ मैं
समेट लाता हूँ मोती तुम्हारी यादों के
जो ख़ल्वतों के समुंदर में डूबता हूँ मैं
तुम्हें भी मुझ में न शायद वो पहली बात मिले
ख़ुद अपने वास्ते अब कोई दूसरा हूँ मैं
जो दे सको तो ख़ुनुक साए दो मोहब्बत के
ख़याल-ओ-ख़्वाब की दुनिया में जल रहा हूँ मैं
वो ख़ुद मुझी में कहीं खो गया न हो 'आज़ाद'
जिसे ख़ला-ए-ज़माना में ढूँडता हूँ मैं
(662) Peoples Rate This