उसे भी जाते हुए तुम ने मुझ से छीन लिया
तुम्हारा ग़म तो मिरी आरज़ू का ज़ेवर था
Anwar Masood
Rahat Indori
Javed Akhtar
Gulzar
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(794) Peoples Rate This
एक हंगामा बपा है मुझ में
फिर इस के बा'द का कोई न हो गुज़र मुझ में
शायद तुम भी अब न मुझे पहचान सको
मैं बिछड़ कर तुझ से तेरी रूह के पैकर में हूँ
वक़्त का ये मोड़ कैसा है कि तुझ से मिल के भी
कभी मिली जो तिरे दर्द की नवा मुझ को
मैं साथ ले के चलूँगा तुम्हें ऐ हम-सफ़रो
तुम्हारे पास रहें हम तो मौत भी क्या है
फेंका था हम पे जो कभी उस को उठा के देख
वो वक़्त आएगा जब ख़ुद तुम्ही ये सोचोगी
देखने वाले मुझे मेरी नज़र से देख ले
वो रूह के गुम्बद में सदा बन के मिलेगा