मैं साथ ले के चलूँगा तुम्हें ऐ हम-सफ़रो
मैं तुम से आगे हूँ लेकिन ठहरने वाला हूँ
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किस से पूछें रात-भर अपने भटकने का सबब
आज आईने में ख़ुद को देख कर याद आ गया
मैं अपने आप से इक खेल करने वाला हूँ
यादों की महफ़िल में खो कर
गो मिरा साथ मिरी अपनी नज़र ने न दिया
तेरे क़दमों की आहट को तरसा हूँ
वो रूह के गुम्बद में सदा बन के मिलेगा
फेंका था हम पे जो कभी उस को उठा के देख
कर्ब हरे मौसम का तब तक सहना पड़ता है
फिर इस के बा'द का कोई न हो गुज़र मुझ में
एक वो हैं कि जिन्हें अपनी ख़ुशी ले डूबी
वो जो किसी का रूप धार कर आया था