किस से पूछें रात-भर अपने भटकने का सबब
सब यहाँ मिलते हैं जैसे नींद में जागे हुए
Wasi Shah
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Gulzar
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
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हमारी आँख में ठहरा हुआ समुंदर था
ये मैं था या मिरे अंदर का ख़ौफ़ था जिस ने
वो जो किसी का रूप धार कर आया था
तुम्हारे पास रहें हम तो मौत भी क्या है
शायद तुम भी अब न मुझे पहचान सको
यादों की महफ़िल में खो कर
एक हंगामा बपा है मुझ में
वो रूह के गुम्बद में सदा बन के मिलेगा
कभी मिली जो तिरे दर्द की नवा मुझ को
हर इक शिकस्त को ऐ काश इस तरह मैं सहूँ
अपनी सारी काविशों को राएगाँ मैं ने किया
मेरा तो नाम रेत के सागर पे नक़्श है