आसमाँ एक सुलगता हुआ सहरा है जहाँ
ढूँढता फिरता है ख़ुद अपना ही साया सूरज
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डूब कर ख़ुद में कभी यूँ बे-कराँ हो जाऊँगा
अपनी सारी काविशों को राएगाँ मैं ने किया
एक हंगामा बपा है मुझ में
फिर इस के बा'द का कोई न हो गुज़र मुझ में
गो मिरा साथ मिरी अपनी नज़र ने न दिया
दश्त-ए-ज़ुल्मात में हम-राह मिरे
किस से पूछें रात-भर अपने भटकने का सबब
मेरा तो नाम रेत के सागर पे नक़्श है
समेट लो मुझे अपनी सदा के हल्क़ों में
मैं साथ ले के चलूँगा तुम्हें ऐ हम-सफ़रो
हमारी आँख में ठहरा हुआ समुंदर था