समेट लाता हूँ मोती तुम्हारी यादों के
जो ख़ल्वतों के समुंदर में डूबता हूँ मैं
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दश्त-ए-ज़ुल्मात में हम-राह मिरे
गो मिरा साथ मिरी अपनी नज़र ने न दिया
कभी मिली जो तिरे दर्द की नवा मुझ को
ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी!! आ दो घड़ी मिल कर रहें
साल-ए-नौ आता है तो महफ़ूज़ कर लेता हूँ मैं
तुम्हारे पास रहें हम तो मौत भी क्या है
उम्र भर चलते रहे हम वक़्त की तलवार पर
किसे मिलती नजात 'आज़ाद' हस्ती के मसाइल से
देखने वाले मुझे मेरी नज़र से देख ले
आप जिस रह-गुज़र-ए-दिल से कभी गुज़रे थे
लम्हा लम्हा इक नई सई-ए-बक़ा करती हुई
उसे भी जाते हुए तुम ने मुझ से छीन लिया