नाला Poetry (page 1)

न शिकवा लब तक आएगा न नाला दिल से निकलेगा

नया जन्म

ज़ुबैर रिज़वी

ज़िंदगानी की हक़ीक़त तब ही खुलती है मियाँ

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

न आए सामने मेरे अगर नहीं आता

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

नौ-गिरफ़्तार-ए-क़फ़स हूँ मुझे कुछ याद नहीं

ज़हीर देहलवी

बज़्म-ए-दुश्मन में जा के देख लिया

ज़हीर देहलवी

उसी से आए हैं आशोब आसमाँ वाले

ज़फ़र इक़बाल

बे-धड़क पिछले पहर नाला-ओ-शेवन न करें

यगाना चंगेज़ी

काम दीवानों को शहरों से न बाज़ारों से

यगाना चंगेज़ी

कोई सूरत से गर सफ़ा हो

वज़ीर अली सबा लखनवी

किस मुँह से कहें गुनाह क्या हैं

वज़ीर अली सबा लखनवी

आया जो मौसम-ए-गुल तो ये हिसाब होगा

वज़ीर अली सबा लखनवी

नहीं मालूम कितने हो चुके हैं इम्तिहाँ अब तक

वासिफ़ देहलवी

ऐ हम-दमाँ भुलाओ न तुम याद-ए-रफ़्तगाँ

वलीउल्लाह मुहिब

मग़्ज़-ए-बहार इस बरस उस बिन बचा न था

वली उज़लत

दिलों में रहिए जहाँ के वले ख़ुदा के ढब

वली उज़लत

असीरी बे-मज़ा लगती है बिन-सय्याद क्या कीजे

वली उज़लत

कभी लुत्फ़-ए-ज़बान-ए-ख़ुश-बयाँ थे

वाजिद अली शाह अख़्तर

नालों से अगर मैं ने कभी काम लिया है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

मैं ने माना काम है नाला दिल-ए-नाशाद का

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

किसी तरह दिन तो कट रहे हैं फ़रेब-ए-उम्मीद खा रहा हूँ

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

आज़ाद उस से हैं कि बयाबाँ ही क्यूँ न हो

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

आह-ए-शब नाला-ए-सहर ले कर

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

वो दिल कहाँ है अहल-ए-नज़र दिल कहें जिसे

तिलोकचंद महरूम

ख़िज़ाँ से पेशतर सारा चमन बर्बाद होता है

तिलोकचंद महरूम

ज़ेर-ए-लब रहा नाला दर्द की दवा हो कर

ताबिश देहलवी

मुझे ऐश ओ इशरत की क़ुदरत नहीं है

ताबाँ अब्दुल हई

फिर उम्र-भर की नाला-सराई का वक़्त है

सय्यद तम्जीद हैदर तम्जीद

किसी मस्त-ए-ख़्वाब का है अबस इंतिज़ार सो जा

सुरूर जहानाबादी

अपनी अना के गुम्बद-ए-बे-दर में बंद है

सूरज तनवीर

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