नाला Poetry (page 2)

तुझ को आते ही नहीं छुपने के अंदाज़ अभी

सूफ़ी तबस्सुम

ग़ज़ब है जुस्तजू-ए-दिल का ये अंजाम हो जाए

शेरी भोपाली

उस संग-ए-आस्ताँ पे जबीन-ए-नियाज़ है

ज़ौक़

न करता ज़ब्त मैं नाला तो फिर ऐसा धुआँ होता

ज़ौक़

कोई कमर को तिरी कुछ जो हो कमर तो कहे

ज़ौक़

ख़त बढ़ा काकुल बढ़े ज़ुल्फ़ें बढ़ीं गेसू बढ़े

ज़ौक़

जुदा हों यार से हम और न हो रक़ीब जुदा

ज़ौक़

था ग़ैर का जो रंज-ए-जुदाई तमाम शब

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

तंग थी जा ख़ातिर-ए-नाशाद में

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

शब वस्ल की भी चैन से क्यूँकर बसर करें

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

वहशत से हर सुख़न मिरा गोया ग़ज़ाला है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

हमारी सैर को गुलशन से कू-ए-यार बेहतर था

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

दर्द-ए-दिल मेरी आह से पूछो

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

बुलंदी की पैमाइश

शहज़ाद नय्यर

हम क़ुव्वत-ए-जज़्ब-ए-दिल दिखाएँ

शहाबुद्दीन साक़िब

सय्याद के जिगर में करे था सिनाँ का काम

शाह नसीर

मत पूछ वारदात-ए-शब-ए-हिज्र ऐ 'नसीर'

शाह नसीर

सदा है इस आह-ओ-चश्म-ए-तर से फ़लक पे बिजली ज़मीं पे बाराँ

शाह नसीर

दिल इश्क़-ए-ख़ुश-क़दाँ में जो ख़्वाहान-ए-नाला था

शाह नसीर

लश्कर-ए-इश्क़ आ पड़ा है मुल्क-ए-दिल पर टूट टूट

शाह आसिम

इश्क़ के अक़्लीम में चाल-ओ-चलन कुछ और है

शाह आसिम

दम-ए-ता'मीर तख़रीब-ए-जहाँ कुछ और कहती है

शायर फतहपुरी

तू वो हिन्दोस्ताँ में लाला है

शाद लखनवी

पास उस बुत के जो ग़ैर आ के कोई बैठ गया

शाद लखनवी

लब-ए-जाँ-बख़्श पर जो नाला है

शाद लखनवी

ख़त देखिए दीदार की सूझी ये नई है

शाद लखनवी

तेरी ज़ुल्फ़ें ग़ैर अगर सुलझाएगा

शाद अज़ीमाबादी

ता-उम्र आश्ना न हुआ दिल गुनाह का

शाद अज़ीमाबादी

जिए जाएँगे हम भी लब पे दम जब तक नहीं आता

शाद अज़ीमाबादी

अगर मरते हुए लब पर न तेरा नाम आएगा

शाद अज़ीमाबादी

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