नाला Poetry (page 4)

करूँ शिकवा न क्यूँ चर्ख़-ए-कुहन से

रजब अली बेग सुरूर

शब ख़्वाब में देखा था मजनूँ को कहीं अपने

इंशा अल्लाह ख़ान

नींद मस्तों को कहाँ और किधर का तकिया

इंशा अल्लाह ख़ान

महफ़िल में उस पे रात जो तू मेहरबाँ न था

इम्दाद इमाम असर

क्यूँ देखिए न हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद की तरफ़

इम्दाद इमाम असर

इस तरह ज़ीस्त बसर की कोई पुरसाँ न हुआ

इमदाद अली बहर

गया सब अंदोह अपने दिल का थमे अब आँसू क़रार आया

इमदाद अली बहर

बुतो ख़ुदा पे न रक्खो मोआ'मला दिल का

इमदाद अली बहर

करे जो हर क़दम पर एक नाला

इमाम बख़्श नासिख़

सनम कूचा तिरा है और मैं हूँ

इमाम बख़्श नासिख़

ये बस्तियाँ हैं कि मक़्तल दुआ किए जाएँ

इफ़्तिख़ार आरिफ़

पिछले-पहर के सन्नाटे में

इब्न-ए-इंशा

नाला-ए-गर्म के और दम सर्द भरे क्या जिएँ हम तो मरे

हातिम अली मेहर

गुल-बाँग थी गुलों की हमारा तराना था

हातिम अली मेहर

दर्द-ए-दिल की उन्हें ख़बर न हुई

हसरत मोहानी

उस ज़ुल्फ़ से दिल हो कर आज़ाद बहुत रोया

हसरत अज़ीमाबादी

एक-दम ख़ुश्क मिरा दीदा-ए-तर है कि नहीं

हसरत अज़ीमाबादी

आश्ना कब हो है ये ज़िक्र दिल-ए-शाद के साथ

हसरत अज़ीमाबादी

ख़ुद को पाने की जुस्तुजू है वही

हसन आबिद

कल शाम लब-ए-बाम जो वो जल्वा-नुमा था

हमीद जालंधरी

मरीज़-ए-इश्क़ की जुज़-मर्ग दुनिया में दवा क्यूँ हो

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा

गुल आते हैं हस्ती में अदम से हमा-तन-गोश

हैदर अली आतिश

काम हिम्मत से जवाँ मर्द अगर लेता है

हैदर अली आतिश

हुस्न-ए-परी इक जल्वा-ए-मस्ताना है उस का

हैदर अली आतिश

बर्क़ को उस पर अबस गिरने की हैं तय्यारियाँ

हैदर अली आतिश

कोई जहाँ में न यारब हो मुब्तला-ए-फ़िराक़

हफ़ीज़ जौनपुरी

दिया जब जाम-ए-मय साक़ी ने भर के

हफ़ीज़ जौनपुरी

मेरी शाएरी

हफ़ीज़ जालंधरी

शब को नाला जो मिरा ता-ब-फ़लक जाता है

हबीब मूसवी

शब कि मुतरिब था शराब-ए-नाब थी पैमाना था

हबीब मूसवी

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