भूमिका Poetry (page 4)

रेत पर छोड़ गया नक़्श हज़ारों अपने

वज़ीर आग़ा

तिरा ही रूप नज़र आए जा-ब-जा मुझ को

वज़ीर आग़ा

रंग और रूप से जो बाला है

वज़ीर आग़ा

धूप के साथ गया साथ निभाने वाला

वज़ीर आग़ा

ज़िंदगी तुझ पे अब इल्ज़ाम कोई क्या रक्खे

वसीम बरेलवी

ख़ुश-नज़र कह के टाल दे मुझ को

वक़ार वासिक़ी

ग़म-ए-मोहब्बत है कार-फ़रमा दुआ से पहले असर से पहले

वक़ार बिजनोरी

चश्म-ए-यक़ीं से देखिए जल्वा-गह-ए-सिफ़ात में

वक़ार बिजनोरी

साज़-ए-हस्ती में कुछ सदा ही नहीं

वामिक़ जौनपुरी

नए गुल खिले नए दिल बने नए नक़्श कितने उभर गए

वामिक़ जौनपुरी

वाँ जो कुछ का'बे में असरार है अल्लाह अल्लाह

वलीउल्लाह मुहिब

मिरे दिल में हिज्र के बाब हैं तुझे अब तलक वही नाज़ है

वलीउल्लाह मुहिब

ग़म-ए-जाँ तू है अगर राहत-ए-जाँ है तू है

वलीउल्लाह मुहिब

जब से दिलबर ने आँख फेरा है

वली उज़लत

असीरी बे-मज़ा लगती है बिन-सय्याद क्या कीजे

वली उज़लत

तुराब-ए-पा-ए-हसीनान-ए-लखनऊ है ये

वाजिद अली शाह अख़्तर

सुना है कूच तो उन का पर इस को क्या कहिए

वाजिद अली शाह अख़्तर

'वहशत'-ए-मुब्तला ख़ुदा के लिए

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

मुरव्वत का पास और वफ़ा का लिहाज़

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

लुत्फ़-ए-निहाँ से जब जब वो मुस्कुरा दिए हैं

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

लूटा है मुझे उस की हर अदा ने

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

लबरेज़-ए-हक़ीक़त गो अफ़साना-ए-मूसा है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

किसी तरह दिन तो कट रहे हैं फ़रेब-ए-उम्मीद खा रहा हूँ

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

आप अपना रू-ए-ज़ेबा देखिए

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

मुद्दत हुई है मदह-ए-हसीनाँ किए हुए

वहीदुद्दीन सलीम

मुद्दत हुई है मदह-ए-हसीनाँ किए हुए

वहीदुद्दीन सलीम

जो दश्त-ए-तमन्ना में हर वक़्त भटकता है

वाहिद प्रेमी

ग़ैर-मुमकिन है कि मिट जाए सनम की सूरत

वाहिद प्रेमी

अपना नफ़स नफ़स है कि शो'ला कहें जिसे

वाहिद प्रेमी

फ़रेब-ए-राह-ए-मोहब्बत का आसरा भी नहीं

वहीदुल हसन हाश्मी

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