भूमिका Poetry (page 36)

तिरे वास्ते जान पे खेलेंगे हम ये समाई है दिल में ख़ुदा की क़सम

आग़ा हज्जू शरफ़

पानी शजर पे फूल बना देखता रहा

अफ़ज़ाल नवेद

मकान-ए-ख़्वाब में जंगल की बास रहने लगी

अफ़ज़ाल नवेद

धनक में सर थे तिरी शाल के चुराए हुए

अफ़ज़ाल नवेद

मैं अपने दिल में नई ख़्वाहिशें सजाए हुए

अफ़ज़ल मिनहास

काँच की ज़ंजीर टूटी तो सदा भी आएगी

अफ़ज़ल मिनहास

चुप-चाप निकल आए थे सहरा की तरफ़ हम

अफ़ज़ल गौहर राव

ये हक़ीक़त है वो कमज़ोर हुआ करती हैं

अफ़ज़ल इलाहाबादी

दीवार-ए-चीन

आफ़ताब इक़बाल शमीम

मैं अपने वास्ते रस्ता नया निकालता हूँ

आफ़ताब इक़बाल शमीम

गए मंज़रों से ये क्या उड़ा है निगाह में

आफ़ताब हुसैन

कुछ भी नहीं जो याद-ए-बुतान-ए-हसीं नहीं

अफ़सर इलाहाबादी

दवाम

अफ़रोज़ आलम

फूलों की सेज पर ज़रा आराम क्या किया

आदिल मंसूरी

चाँद के पेट में हमल मछली

आदिल मंसूरी

जलने लगे ख़ला में हवाओं के नक़्श-ए-पा

आदिल मंसूरी

हुआ ख़त्म दरिया तो सहरा लगा

आदिल मंसूरी

एक क़तरा अश्क का छलका तो दरिया कर दिया

आदिल मंसूरी

आशिक़ थे शहर में जो पुराने शराब के

आदिल मंसूरी

ये हुक्म है तिरी राहों में दूसरा न मिले

अदा जाफ़री

वही ना-सबूरी-ए-आरज़ू वही नक़्श-ए-पा वही जादा है

अदा जाफ़री

उजाला दे चराग़-ए-रहगुज़र आसाँ नहीं होता

अदा जाफ़री

मुझे रंग-ए-ख़्वाब से ज़िंदगी का यक़ीं मिला

अदा जाफ़री

काँटा सा जो चुभा था वो लौ दे गया है क्या

अदा जाफ़री

कहते हैं कि अब हम से ख़ता-कार बहुत हैं

अदा जाफ़री

जो चराग़ सारे बुझा चुके उन्हें इंतिज़ार कहाँ रहा

अदा जाफ़री

जब दिल की रहगुज़र पे तिरा नक़्श-ए-पा न था

अदा जाफ़री

हिस नहीं तड़प नहीं बाब-ए-अता भी क्यूँ खुले

अदा जाफ़री

बेगानगी-ए-तर्ज़-ए-सितम भी बहाना-साज़

अदा जाफ़री

अगर मेरी जबीन-ए-शौक़ वक़्फ़-ए-बंदगी होती

अबु मोहम्मद वासिल

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