भूमिका Poetry (page 34)

चंद उलझी हुई साँसों की अता हूँ क्या हूँ

अख़्तर सईद ख़ान

शिकवा इस का तो नहीं है जो करम छोड़ दिया

अख़तर मुस्लिमी

जीते-जी दुख सुख के लम्हे आते जाते रहते हैं

अख़तर इमाम रिज़वी

ज़मीन पर ही रहे आसमाँ के होते हुए

अख़्तर होशियारपुरी

क़र्या-ए-जाँ से गुज़र कर हम ने ये देखा भी है

अख़्तर होशियारपुरी

मेरे लहू में उस ने नया रंग भर दिया

अख़्तर होशियारपुरी

मैं ने यूँ देखा उसे जैसे कभी देखा न था

अख़्तर होशियारपुरी

कुछ नक़्श हुवैदा हैं ख़यालों की डगर से

अख़्तर होशियारपुरी

ख़्वाहिशें इतनी बढ़ीं इंसान आधा रह गया

अख़्तर होशियारपुरी

दिल में इक जज़्बा-ए-बेदाद-ओ-जफ़ा ही होगा

अख़्तर होशियारपुरी

बजा कि दुश्मन-ए-जाँ शहर-ए-जाँ के बाहर है

अख़्तर होशियारपुरी

कैफ़ियत क्या थी यहाँ आलम-ए-ग़म से पहले

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

ग़म-ज़दा हैं मुब्तला-ए-दर्द हैं नाशाद हैं

अख़्तर अंसारी

अपनी बहार पे हँसने वालो कितने चमन ख़ाशाक हुए

अख़्तर अंसारी

निगह-ए-शौक़ से हुस्न-ए-गुल-ओ-गुलज़ार तो देख

अकबर हैदराबादी

नाम 'अकबर' तो मिरा माँ की दुआ ने रक्खा

अकबर हमीदी

वो हवा न रही वो चमन न रहा वो गली न रही वो हसीं न रहे

अकबर इलाहाबादी

ख़त्म किया सबा ने रक़्स गुल पे निसार हो चुकी

अकबर इलाहाबादी

फ़लसफ़ी को बहस के अंदर ख़ुदा मिलता नहीं

अकबर इलाहाबादी

दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ

अकबर इलाहाबादी

हम अपने-आप में रहते हैं दम में दम जैसे

अजमल सिराज

रो रो के बयाँ करते फिरो रंज-ओ-अलम ख़ूब

अजमल सिद्दीक़ी

न नज़र से कोई गुज़र सका न ही दिल से मलबा हटा सका

अजमल सिद्दीक़ी

हर घड़ी रहता है अब ख़दशा मुझे

अजमल अजमली

जी रहे हैं आफ़ियत में तो हुनर ख़्वाबों का है

ऐन ताबिश

राह-ए-उल्फ़त का निशाँ ये है कि वो है बे-निशाँ

अहसन मारहरवी

संग-ए-दर बन कर भी क्या हसरत मिरे दिल में नहीं

अहसन मारहरवी

मिला जो धूप का सहरा बदन शजर न बना

अहमद ज़िया

ज़हर को मय न कहूँ मय को गवारा न कहूँ

अहमद ज़फ़र

वो फूल जो मुस्कुरा रहा है

अहमद ज़फ़र

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