दवाम

मैं तुम्हारे फ़ैसले का हासिल हूँ

तुम मुझ से बे-वज्ह उलझते हो

मैं ने जो तुम्हें कामयाबियाँ दीं

ख़ुशियाँ अता कीं

उसे क्यूँ नहीं शुमार करते

तुम्हारी हरकतों से दर आने वाली

ज़िंदगी भर की नाकामियाँ

तल्ख़ियों की सूरत

जब तुम्हारे रग-ओ-पै में

पैवस्त हो चुकी हैं

तो

तुम मुझ से उलझ रहे हो

तुम ये समझते हो

कि मैं कोई आज़ाद परिंदा हूँ

जो जब चाहा जहाँ चाहा

सुब्ह-ओ-शाम कर लिया

नहीं

मैं एक ज़िम्मेदार मौसम की तरह

अपनी उँगलियों में

हुआ के डोर

लिपटा कर

दामन-ए-आसमाँ पर नक़्श-ओ-निगार

बना देता हूँ

(707) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Dawam In Hindi By Famous Poet Afroz Alam. Dawam is written by Afroz Alam. Complete Poem Dawam in Hindi by Afroz Alam. Download free Dawam Poem for Youth in PDF. Dawam is a Poem on Inspiration for young students. Share Dawam with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.