नींद Poetry (page 17)
क़िस्सा-ए-ज़ीस्त मुख़्तसर करते
फ़ानी बदायुनी
अब उन्हें अपनी अदाओं से हिजाब आता है
फ़ानी बदायुनी
तुझे ढूँढती हैं नज़रें मुझे इक झलक दिखा जा
फ़ना बुलंदशहरी
न दहर में न हरम में जबीं झुकी होगी
फ़ना बुलंदशहरी
कोई तसव्वुर में जल्वा-गर है बहार दिल में समा रही है
फ़ैज़ी निज़ाम पुरी
दिल जिस का दर्द-ए-इश्क़ का हामिल नहीं रहा
फ़ैज़ुल हसन
ख़ुदा वो वक़्त न लाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
मैं सो गया तो कोई नींद से उठा मुझ में
फ़ैसल अजमी
मैं ज़ख़्म खा के गिरा था कि थाम उस ने लिया
फ़ैसल अजमी
''ला'' भी है एक गुमाँ
फ़हीम शनास काज़मी
रस्ते में शाम हो गई क़िस्सा तमाम हो चुका
फ़हीम शनास काज़मी
दिल-ए-तबाह को अब तक नहीं यक़ीं आया
फ़हीम शनास काज़मी
ये शहर ये ख़्वाबों का समुंदर न बचेगा
एज़ाज़ अफ़ज़ल
अब सराब के चश्मे मौजज़न नहीं होते
एज़ाज़ अफ़ज़ल
मिल सकेगी अब भी दाद-ए-आबला-पाई तो क्या
एजाज़ सिद्दीक़ी
चल रहा हूँ पेश-ओ-पस-मंज़र से उकताया हुआ
एजाज़ गुल
जो अना की सिफ़त है ज़ाती है
डॉक्टर आज़म
किस के सपनों से मिरी नींद सजी रहती है
दिनेश नायडू
वो बहते दरिया की बे-करानी से डर रहा था
दिलावर अली आज़र
कब तक फिरूंगा हाथ में कासा उठा के मैं
दिलावर अली आज़र
हवा ने इस्म कुछ ऐसा पढ़ा था
दिलावर अली आज़र
देखते देखते ही साल गुज़र जाता है
धीरेंद्र सिंह फ़य्याज़
आईने में देख के चेहरा बे-शक मैं हैरान हुआ
देवमणि पांडेय
तिरे बग़ैर
दर्शिका वसानी
पूरा चाँद
दर्शिका वसानी
काश
दर्शिका वसानी
राज़-ए-निहाँ थी ज़िंदगी राज़-ए-निहाँ है आज भी
दर्शन सिंह
ख़्वाब-कारी वही कमख़्वाब वही है कि नहीं
दानियाल तरीर
चाँद छूने की तलबगार नहीं हो सकती
दानियाल तरीर
उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं
दाग़ देहलवी
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