जो अना की सिफ़त है ज़ाती है
जो अना की सिफ़त है ज़ाती है
ये न आती है ये न जाती है
जब कोई फ़िक्र छटपटाती है
तब कहाँ नींद-वींद आती है
आज दानिस्ता बिंत-ए-हव्वा ख़ुद
इश्तिहारों के काम आती है
यूँ दबे पाँव आती तेरी याद
जिस तरह सुब्ह धूप आती है
मैं फ़िदाईन हो गया शायद
हर क़दम मेरा आत्म-घाती है
अब मोहब्बत है मस्लहत-आमेज़
अब कहाँ जू-ए-शीर लाती है
लोग अब फ़ैसला बताते हैं
और अदालत भी मान जाती है
ज़िंदगी की नुमूद भी 'आज़म'
सानिहाती है हादसाती है
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