नज़र Poetry (page 3)

न पूछो ज़ीस्त-फ़साना तमाम होने तक

याक़ूब आमिर

चलता नहीं फ़रेब किसी उज़्र-ख़्वाह का

यगाना चंगेज़ी

किस मुँह से कहें गुनाह क्या हैं

वज़ीर अली सबा लखनवी

बच कर कहाँ मैं उन की नज़र से निकल गया

वज़ीर अली सबा लखनवी

ज़र्रा हरीफ़-ए-मेहर दरख़्शाँ है आज कल

वासिफ़ देहलवी

तिरी उल्फ़त में जितनी मेरी ज़िल्लत बढ़ती जाती है

वासिफ़ देहलवी

इज़्ज़त उन्हें मिली वही आख़िर बड़े रहे

वासिफ़ देहलवी

इसी ख़याल से पलकों पे रुक गए आँसू

वसीम बरेलवी

मैं आसमाँ पे बहुत देर रह नहीं सकता

वसीम बरेलवी

लहू न हो तो क़लम तर्जुमाँ नहीं होता

वसीम बरेलवी

अपने अंदर उतर रहा हूँ मैं

वक़ार वासिक़ी

कुएँ जो पानी की बिन प्यास चाह रखते हैं

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

वो निगाह मिल के निगाह से ब-अदा-ए-ख़ास झिझक गई

वक़ार बिजनोरी

कार्ल मार्क्स

वामिक़ जौनपुरी

ख़याल दिल को है उस गुल से आश्नाई का

वलीउल्लाह सरहिंदी इशतियाक़

मैं जीते-जी तलक रहूँ मरहून आप का

वलीउल्लाह मुहिब

मय-ए-गुल-गूँ के जो शीशे में परी रहती है

वलीउल्लाह मुहिब

किया बाग़-ए-जहाँ में नाम उन का सर्व कह कह कर

वलीउल्लाह मुहिब

अश्क-बारी का मिरी आँखों ने ये बाँधा है झाड़

वलीउल्लाह मुहिब

ख़ुदा किसी कूँ किसी साथ आश्ना न करे

वली उज़लत

ख़ुदा ही पहुँचे फ़रियादों को हम से बे-नसीबों के

वली उज़लत

बहार आई ब-तंग आया दिल-ए-वहशत-पनाह अपना

वली उज़लत

वो नाज़नीं अदा में एजाज़ है सरापा

वली मोहम्मद वली

दिन भर ग़मों की धूप में चलना पड़ा मुझे

वाली आसी

गर्दन झुकी हुई है उठाते नहीं हैं सर

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

यही है इश्क़ की मुश्किल तो मुश्किल आसाँ है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

पोशीदा देखती है किसी की नज़र मुझे

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

क्या है कि आज चलते हो कतरा के राह से

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

जो तुझ से शोर-ए-तबस्सुम ज़रा कमी होगी

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

हुए हैं गुम जिस की जुस्तुजू में उसी की हम जुस्तुजू करेंगे

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

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