नज़र Poetry (page 40)

मैं गुफ़्तुगू हूँ कि तहरीर के जहान में हूँ

अदीम हाशमी

बख़्शे फिर उस निगाह ने अरमाँ नए नए

अदीब सहारनपुरी

कटता कहाँ तवील था रातों का सिलसिला

अदा जाफ़री

जो दिल में थी निगाह सी निगाह में किरन सी थी

अदा जाफ़री

साज़-ए-सुख़न बहाना है

अदा जाफ़री

ज़बाँ को हुक्म निगाह-ए-करम को पहचाने

अदा जाफ़री

यही नहीं कि ज़ख़्म-ए-जाँ को चारा-जू मिला नहीं

अदा जाफ़री

शायद अभी है राख में कोई शरार भी

अदा जाफ़री

ख़लिश-ए-तीर-ए-बे-पनाह गई

अदा जाफ़री

जब दिल की रहगुज़र पे तिरा नक़्श-ए-पा न था

अदा जाफ़री

हिस नहीं तड़प नहीं बाब-ए-अता भी क्यूँ खुले

अदा जाफ़री

गुलों सी गुफ़्तुगू करें क़यामतों के दरमियाँ

अदा जाफ़री

बेगानगी-ए-तर्ज़-ए-सितम भी बहाना-साज़

अदा जाफ़री

आलम ही और था जो शनासाइयों में था

अदा जाफ़री

नक़्श-ए-यक़ीं तिरा वजूद-ए-वहम बुझा गुमाँ बुझा

अबुल हसनात हक़्क़ी

ज़ब्त कर आह बार बार न कर

अबू ज़ाहिद सय्यद यहया हुसैनी क़द्र

जब ये दावे थे कि हर दुख का मुदावा हो गए

अबु मोहम्मद सहर

सरसों लगा के पाँव तलक दिल हुआ हूँ मैं

आबरू शाह मुबारक

सैर-ए-बहार-ए-हुस्न ही अँखियों का काम जान

आबरू शाह मुबारक

किस की रखती हैं ये मजाल अँखियाँ

आबरू शाह मुबारक

हमें ख़बर नहीं कुछ कौन है कहाँ कोई है

अबरार अहमद

जब आसमान पर मह-ओ-अख़्तर पलट कर आए

आबिद मुनावरी

न कर्ब-ए-हिज्र न कैफ़्फ़ियत-ए-विसाल में हूँ

आबिद हशरी

वो इक निगाह जो ख़ामोश सी है बरसों से

आबिद आलमी

जो शख़्स तुझ को फ़रिश्ता दिखाई देता है

आबिद आलमी

सफ़ेद-पोश दरिंदों ने गुल खिलाए थे

अब्दुर्रहीम नश्तर

क्यूँके करे न शहर को रो रो उजाड़ चश्म

अब्दुल वहाब यकरू

मैं जानता हूँ कौन हूँ मैं और क्या हूँ मैं

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

पुर्सिश है चश्म-ए-अश्क-फ़शाँ पर न आए हर्फ़

अब्दुल मन्नान तरज़ी

मिरी निगाह को जल्वों का हौसला दे दो

अब्दुल मन्नान तरज़ी

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