निशां Poetry (page 20)

हम नीं सजन सुना है उस शोख़ के दहाँ है

आबरू शाह मुबारक

ये दाग़-ए-इश्क़ जो मिटता भी है चमकता भी है

अबरार अहमद

ज़मीं नहीं ये मिरी आसमाँ नहीं मेरा

अबरार अहमद

यक़ीन है कि गुमाँ है मुझे नहीं मालूम

अबरार अहमद

हमें ख़बर नहीं कुछ कौन है कहाँ कोई है

अबरार अहमद

शिकस्त

आबिद आलमी

ख़फ़ा मत हो मुझ को ठिकाने बहुत हैं

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

सज्दे के हर निशाँ पे है ख़ूँ सा जमा हुआ

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

गर्द-ए-फ़िराक़ ग़ाज़ा कश-ए-आइना न हो

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

नक़्श-ए-दिल है सितम जुदाई का

अब्दुल ग़फ़ूर नस्साख़

ख़बर के मोड़ पे संग-ए-निशाँ थी बे-ख़बरी

अब्दुल अहद साज़

मुतज़ाद ज़ाविए

अब्दुल अहद साज़

बे-निशाँ होने से पहले

अब्दुल अहद साज़

दरख़्त रूह के झूमे परिंद गाने लगे

अब्दुल अहद साज़

बुझ गई आग तो कमरे में धुआँ ही रखना

अब्दुल अहद साज़

ताबीर को तरसे हुए ख़्वाबों की ज़बाँ हैं

अब्बास रिज़वी

मिरे हर ज़ख़्म पर इक दास्ताँ थी उस के ज़ुल्मों की

आज़िम कोहली

ख़याल-ए-यार का जल्वा यहाँ भी था वहाँ भी था

आज़िम कोहली

असीरान-ए-क़फ़स ऐसा तो हो तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ अपना

आसी रामनगरी

वापसी

आशुफ़्ता चंगेज़ी

ताबीर इस की क्या है धुआँ देखता हूँ मैं

आशुफ़्ता चंगेज़ी

हो जाएगी जब तुम से शनासाई ज़रा और

आनिस मुईन

नहीं मुमकिन कि तिरे हुक्म से बाहर मैं हूँ

आग़ा अकबराबादी

हिन्दोस्ताँ

आफ़ताब राईस पानीपती

क्या ज़मीं क्या आसमाँ कुछ भी नहीं

आफ़ाक़ सिद्दीक़ी

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