ख़बर के मोड़ पे संग-ए-निशाँ थी बे-ख़बरी
ठिकाने आए मिरे होश या ठिकाने लगे
Anwar Masood
Wasi Shah
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Gulzar
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
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जब तक शब्द के दीप जलेंगे सब आएँगे तब तक यार
नींद मिट्टी की महक सब्ज़े की ठंडक
ज़ियारत
बहुत मलूल बड़े शादमाँ गए हुए हैं
बजा कि पाबंद-ए-कूचा-ए-नाज़ हम हुए थे
मैं ने अपनी रूह को अपने तन से अलग कर रक्खा है
दरख़्त रूह के झूमे परिंद गाने लगे
हद-ए-उफ़ुक़ पर सारा कुछ वीरान उभरता आता है
बजा कि लुत्फ़ है दुनिया में शोर करने का
बद-सोहबतों को छोड़ शरीफ़ों के साथ घूम
मैं एक साअत-ए-बे-ख़ुद में छू गया था जिसे