ख़िरद की रह जो चला मैं तो दिल ने मुझ से कहा
अज़ीज़-ए-मन ''ब-सलामत-रवी ओ बाज़-आई''
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यूँ तो सौ तरह की मुश्किल सुख़नी आए हमें
लफ़्ज़ों के सहरा में क्या मा'नी के सराब दिखाना भी
मिरे मह ओ साल की कहानी की दूसरी क़िस्त इस तरह है
लफ़्ज़ का दरिया उतरा दश्त-ए-मआनी फैला
नानी-अमाँ की वफ़ात पर एक नज़्म
शख़्सिय्यत की मौसीक़ी
बुझ गई आग तो कमरे में धुआँ ही रखना
ज़र्फ़
सबक़ उम्र का या ज़माने का है
दम-ए-वापसीं
अबस है राज़ को पाने की जुस्तुजू क्या है