निशां Poetry (page 1)

हवाओं में दिलों का कारवाँ है

अल्का मिश्रा

राहत-ए-नज़र भी है वो अज़ाब-ए-जाँ भी है

महमूद शाम

तलाश-ए-नूर

दर्शन सिंह

बीते हुए कल का इंतिज़ार

एहतिशाम अख्तर

सूरज की पहली किरन

अमजद इस्लाम अमजद

मोहब्बत ख़्वाब जैसी है

फ़ाख़िरा बतूल

मिट्टी मौसम और रंग

ज़ेर-ए-बाम गुम्बद-ए-ख़ज़रा अज़ाँ

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

दश्त में धूप की भी कमी है कहाँ

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

जाने हम ये किन गलियों में ख़ाक उड़ा कर आ जाते हैं

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

फ़रज़ाना हूँ और नब्ज़-शनास-ए-दो-जहाँ हूँ

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

तुम जहाँ अपनी मसाफ़त के निशाँ छोड़ गए

ज़ुबैर रिज़वी

हम कहाँ आ गए

ज़ुबैर रिज़वी

सितमगरी भी मिरी कुश्तगाँ भी मेरे थे

ज़ुबैर रिज़वी

दोनों हम-पेशा थे दोनों ही में याराना था

ज़ुबैर रिज़वी

फिर उसी धुन में उसी ध्यान में आ जाता हूँ

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

चराग़-ए-कुश्ता से क़िंदील कर रहा है मुझे

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

जिस तरह प्यासा कोई आब-ए-रवाँ तक पहुँचे

ज़िया ज़मीर

तूफ़ाँ में नाव आई तो क्या सम्त क्या निशाँ

ज़ेब ग़ौरी

शहर में हम से कुछ आशुफ़्ता-दिलाँ और भी हैं

ज़ेब ग़ौरी

मेरे ख़्वाबों का कभी जब आसमाँ रौशन हुआ

ज़की तारिक़

चंद मोहमल सी लकीरें ही सही इफ़्शा रहूँ

ज़हीर सिद्दीक़ी

दिल गया दिल का निशाँ बाक़ी रहा

ज़हीर देहलवी

मुज़्महिल क़दमों पे बार

ज़फ़र रबाब

यक़ीं की ख़ाक उड़ाते गुमाँ बनाते हैं

ज़फ़र इक़बाल

न गुमाँ रहने दिया है न यक़ीं रहने दिया

ज़फ़र इक़बाल

मिरे निशान बहुत हैं जहाँ भी होता हूँ

ज़फ़र इक़बाल

मैं ने कब दावा किया था सर-ब-सर बाक़ी हूँ मैं

ज़फ़र इक़बाल

जहाँ मेरे न होने का निशाँ फैला हुआ है

ज़फ़र इक़बाल

एक ही नक़्श है जितना भी जहाँ रह जाए

ज़फ़र इक़बाल

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