उम्मीद Poetry (page 6)

आ दिल में तुझे कहीं छुपा लूँ

शोहरत बुख़ारी

नख़्ल-ए-दुआ कभी जब दिल की ज़मीं से निकले

शोएब निज़ाम

बे-क़रारी का सबब हर काम की उम्मीद है

ज़ौक़

ज़ख़्मी हूँ तिरे नावक-ए-दुज़-दीदा-नज़र से

ज़ौक़

नहीं सबात बुलंदी-ए-इज्ज़-ओ-शाँ के लिए

ज़ौक़

मरज़-ए-इश्क़ जिसे हो उसे क्या याद रहे

ज़ौक़

कब हक़-परस्त ज़ाहिद-ए-जन्नत-परस्त है

ज़ौक़

न कहो ए'तिबार है किस का

शैख़ अली बख़्श बीमार

उठ सुब्ह हुई मुर्ग़-ए-चमन नग़्मा-सरा देख

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

तंग थी जा ख़ातिर-ए-नाशाद में

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

एक रात आप ने उम्मीद पे क्या रक्खा है

शाज़ तमकनत

एक रात आप ने उम्मीद पे क्या रक्खा है

शाज़ तमकनत

आ कर नजात बख़्श दो रंज-ओ-मलाल से

शौक़ सालकी

तेरी सी भी आफ़त कोई ऐ सोज़िश-ए-तब है

शौक़ क़िदवाई

दर्द में जब कमी सी होती है

शातिर हकीमी

दर से मायूस तिरे तालिब-ए-इकराम चले

शातिर हकीमी

बड़ा है दुख सो हासिल है ये आसानी मुझे

शारिक़ कैफ़ी

फ़ज़ा-ए-सेहन-ए-गुलिस्ताँ है सोगवार अभी

शरीफ़ कुंजाही

धड़कनें बंद-ए-तकल्लुफ़ से ज़रा आज़ाद कर

शरीफ़ कुंजाही

किसी के वादा-ए-फ़र्दा में गुम है इंतिज़ार अब भी

शम्स फ़र्रुख़ाबादी

चाँद तारों ने भी जब रख़्त-ए-सफ़र खोला है

शम्स फ़र्रुख़ाबादी

मिरे अतराफ़ ये कैसी सदाएँ रक़्स करती हैं

शमीम रविश

ख़मोश किस लिए बैठे हो चश्म-ए-तर क्यूँ हो

शमीम करहानी

तिरे अहल-ए-दर्द के रोज़-ओ-शब इसी कश्मकश में गुज़र गए

शमीम जयपुरी

न पूछ कब से ये दम घुट रहा है सीने में

शमीम जयपुरी

बे-गुनाही का हर एहसास मिटा दे कोई

शमीम जयपुरी

आज जीने की कुछ उम्मीद नज़र आई है

शमीम जयपुरी

ये किस का जल्वा-ए-हैरत-फ़ज़ा निगाह में है

शकूर जावेद

आसमाँ था तुम थे या मेरा सितारा कौन था

शकील जाज़िब

इसी दुनिया के इसी दौर के हैं

शकील जमाली

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