िशाक Poetry (page 2)

ज़लज़ला

शकील बदायुनी

दिल-ए-उश्शाक़ परिंदों की तरह उड़ते हैं

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

भर गए ज़ख़्म तो क्या दर्द तो अब भी कोई है

शाहिद कमाल

वाँ कमर बाँधे हैं मिज़्गाँ क़त्ल पर दोनों तरफ़

शाह नसीर

शब जो रुख़-ए-पुर-ख़ाल से वो बुर्के को उतारे सोते हैं

शाह नसीर

बे-सबब हाथ कटारी को लगाना क्या था

शाह नसीर

आदम का जिस्म जब कि अनासिर से मिल बना

मोहम्मद रफ़ी सौदा

पत्थरों में आइना मौजूद है

सरवत हुसैन

जहाँ सुल्ताना पढ़ती थी

सरफ़राज़ शाहिद

मौत की ख़ुशबू

साक़ी फ़ारुक़ी

ग़ुबार होती सदी के सहराओं से उभरते हुए ज़माने

सलीम कौसर

रुख़-ए-रौशन दिखाइए साहब

सख़ी लख़नवी

देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से

साहिर लुधियानवी

ज़माने में वो मह-लक़ा एक है

रिन्द लखनवी

जलन दिल की लिक्खें जो हम दिल-जले

रिन्द लखनवी

हर नफ़स मूरिद-ए-सफ़र हैं हम

रज़ा अज़ीमाबादी

गुल-ए-उश्शाक़ रंग-ए-बाख़्ता है

रज़ा अज़ीमाबादी

उक़्दे उल्फ़त के सब ऐ रश्क-ए-क़मर खोल दिए

रशीद लखनवी

यक़ीनन है कोई माह-ए-मुनव्वर पीछे चिलमन के

रंजूर अज़ीमाबादी

क्या भला शैख़-जी थे दैर में थोड़े पत्थर

इंशा अल्लाह ख़ान

सर्व में रंग है कुछ कुछ तिरी ज़ेबाई का

इमदाद अली बहर

सब हसीनों में वो प्यारा ख़ूब है

इमदाद अली बहर

नफ़्स-ए-सरकश को क़त्ल कर ऐ दिल

इमदाद अली बहर

आतिश-ए-बाग़ ऐसी भड़की है कि जलती है हवा

इमदाद अली बहर

आतिश-ए-बाग़ ऐसे भड़की है कि जलती है हवा

इमदाद अली बहर

तार-ए-शबनम की तरह सूरत-ए-ख़स टूटती है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

वारिद कोह-ए-बयाबाँ जब में दीवाना हुआ

हातिम अली मेहर

वस्ल की बनती हैं इन बातों से तदबीरें कहीं

हसरत मोहानी

पैरव-ए-मस्लक-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा होते हैं

हसरत मोहानी

फ़ैज़-ए-मोहब्बत से है क़ैद-ए-मिहन

हसरत मोहानी

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