उठो Poetry (page 13)

हिज्र में जो अश्क-ए-चश्म-ए-तर गिरा

बदर जमाली

वही जिंस-ए-वफ़ा आख़िर फ़राहम होती जाती है

बीएस जैन जौहर

नन्हा ग़ासिब

अज़मतुल्लाह ख़ाँ

चोर-बाज़ार

अज़ीज़ क़ैसी

ये ग़लत है ऐ दिल-ए-बद-गुमाँ कि वहाँ किसी का गुज़र नहीं

अज़ीज़ लखनवी

शहर जिन के नाम से ज़िंदा था वो सब उठ गए

अज़ीज़ हामिद मदनी

जी-दारो! दोज़ख़ की हवा में किस की मोहब्बत जलती है

अज़ीज़ हामिद मदनी

आतिश-ए-मीना नज़र आई हरीफ़ाना मुझे

अज़ीज़ हामिद मदनी

न याद आया न भूला न सानेहा मुझ को

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

लहू से उठ के घटाओं के दिल बरसते हैं

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

एक दिए ने सदियों क्या क्या देखा है बतलाए कौन

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

न जाने शाम ने क्या कह दिया सवेरे से

अज़हर नवाज़

मिरे वजूद का मेहवर चमकता रहता है

अज़हर हाश्मी

जाते हुए नहीं रहा फिर भी हमारे ध्यान में

अज़हर फ़राग़

तुम्हारे पास रहें हम तो मौत भी क्या है

आज़ाद गुलाटी

चार-सू आलम-ए-इम्काँ में अँधेरा देखा

औज लखनवी

वो

अतीक़ुल्लाह

मैं कि तुम पे बाज़ हूँ

अतीक़ुल्लाह

दिल लगाना चाहिए चल कर किसी हैवान से

अतीक़ मुज़फ़्फ़रपुरी

ग़म ये नहीं कि ग़म से मुलाक़ात हुई

अतीक़ असर

आँसू तुम्हारी आँख में आए तो उठ गए

अताउर्रहमान जमील

आहंग-ए-नौ

असरार-उल-हक़ मजाज़

वो नक़ाब आप से उठ जाए तो कुछ दूर नहीं

असरार-उल-हक़ मजाज़

तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ूँ न हुई वो सई-ए-करम फ़रमा भी गए

असरार-उल-हक़ मजाज़

निगाह-ए-लुत्फ़ मत उठ ख़ूगर-ए-आलाम रहने दे

असरार-उल-हक़ मजाज़

धुआँ सा इक सम्त उठ रहा है शरारे उड़ उड़ के आ रहे हैं

असरार-उल-हक़ मजाज़

आसमाँ तक जो नाला पहुँचा है

असरार-उल-हक़ मजाज़

इक क़दम उठ गया रवानी में

असलम राशिद

वहाँ हर एक इसी नश्शा-ए-अना में है

असलम इमादी

दीवारों को दिल से बाहर रखने वाले

असलम बदर

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