उठो Poetry (page 11)

तुम कुछ भी करो होश में आने के नहीं हम

फ़रहत एहसास

चराग़-ए-शहर से शम-ए-दिल-ए-सहरा जलाना

फ़रहत एहसास

मोहताज-ए-अजल क्यूँ है ख़ुद अपनी क़ज़ा हो जा

फ़ानी बदायुनी

मौजों के इत्तिहाद का आलम न पूछिए

फ़ना निज़ामी कानपुरी

हुस्न का एक आह ने चेहरा निढाल कर दिया

फ़ना निज़ामी कानपुरी

इक तिश्ना-लब ने बढ़ के जो साग़र उठा लिया

फ़ना निज़ामी कानपुरी

वो आश्ना-ए-मंज़िल-ए-इरफ़ाँ हुआ नहीं

फ़ना बुलंदशहरी

निकले वो फूल बन के तिरे गुल्सिताँ से हम

फ़ना बुलंदशहरी

मिरे दाग़-ए-दिल वो चराग़ हैं नहीं निस्बतें जिन्हें शाम से

फ़ना बुलंदशहरी

ग़म-ए-जानाँ के सिवा कुछ हमें प्यारा न हुआ

फ़ैज़ी निज़ाम पुरी

आँखें बुझ जाएँगी शोला रह जाएगा

फ़ैज़ान हाशमी

तराना

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

अश्गाबाद की शाम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ऐ दिल-ए-बेताब ठहर

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कभी कभी याद में उभरते हैं नक़्श-ए-माज़ी मिटे मिटे से

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

उजाले तेल छिड़कने लगे उजालों पर

एज़ाज़ अफ़ज़ल

नद्दी नद्दी रन पड़ते हैं जब से नाव उतारी है

एज़ाज़ अफ़ज़ल

उजाले तेल छिड़कने लगे उजालों पर

एज़ाज़ अफ़ज़ल

लाशें

एलिज़ाबेथ कुरियन मोना

डर डर के जिसे मैं सुन रहा हूँ

एहतिशाम हुसैन

रंग-ए-तहज़ीब-ओ-तमद्दुन के शनासा हम भी हैं

एहसान दानिश

दिल की रग़बत है जब आप ही की तरफ़

एहसान दानिश

स्टेज पर पड़ा था जो पर्दा वो उठ चुका

दिलावर फ़िगार

शदीद गरमी के मौसम में मुशाइरा

दिलावर फ़िगार

शाइ'र से शेर सुनिए तो मिस्रा उठाइए

दिलावर फ़िगार

ये भीगी रात ये ठंडा समाँ ये कैफ़-ए-बहार

दिल शाहजहाँपुरी

आज बदली है हवा साक़ी पिला जाम-ए-शराब

दाऊद औरंगाबादी

सूरत-ए-हाल अब तो वो नक़्श-ए-ख़याली हो गया

दत्तात्रिया कैफ़ी

सामने जो कहा नहीं होता

दरवेश भारती

काश

दर्शिका वसानी

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