कदम Poetry (page 15)

ख़ुद उठ के हाथ मेरे गरेबाँ में आ गए

सीमाब अकबराबादी

आग पानी भी है मिट्टी है हवा है मुझ में

सीमा गुप्ता

मुझे मुश्किल में यूँ अंदाज़ा-ए-मुश्किल नहीं होता

सय्यद एजाज़ अहमद रिज़वी

हस्ब-ए-फ़रमान-ए-अमीर-ए-क़ाफ़िला चलते रहे

सय्यद नसीर शाह

नसीम है तिरे कूचे में और सबा भी है

मोहम्मद रफ़ी सौदा

मगर वो दीद को आया था बाग़ में गुल के

मोहम्मद रफ़ी सौदा

गदा दस्त-ए-अहल-ए-करम देखते हैं

मोहम्मद रफ़ी सौदा

एक हम से तुझे नहीं इख़्लास

मोहम्मद रफ़ी सौदा

बे-वज्ह नईं है आइना हर बार देखना

मोहम्मद रफ़ी सौदा

विसाल

सत्यपाल आनंद

आया था कोई ज़ेहन तक आ कर पलट गया

सत्य नन्द जावा

आरज़ूओं के शगूफ़ों को जला कर देखो

सत्य नन्द जावा

बिस्तर और बावर्ची

सरवत ज़ेहरा

बात छेड़ो न कोई उस के फ़साने वाली

सरवर नेपाली

तलख़ीस के बदन में तफ़्सीर बोलती है

सरवर अरमान

जिस क़दर शिकवे थे सब हर्फ़-ए-दुआ होने लगे

सरवर आलम राज़

उसी किनारा-ए-हैरत-सरा को जाता हूँ

सरवत हुसैन

जब शाम हुई मैं ने क़दम घर से निकाला

सरवत हुसैन

आए हैं रंग बहाली पर

सरवत हुसैन

हवा चलती है दम ठहरा हुआ है

सरफ़राज़ ज़ाहिद

ग़फ़लतों का समर उठाता हूँ

सरफ़राज़ ज़ाहिद

दो आँखों से कम से कम इक मंज़र में

सरफ़राज़ ज़ाहिद

मैं फ़र्त-ए-मसर्रत से डर है कि न मर जाऊँ

सरदार सोज़

उन बुतों से रब्त तोड़ा चाहिए

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

रह कर मकान में मिरे मेहमान जाइए

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

ये झूट है कि बिछड़ने का उस को ग़म भी नहीं

सदार आसिफ़

जब कभी तेरा नाम लेते हैं

सरदार अंजुम

शायद मिट्टी मुझे फिर पुकारे

सारा शगुफ़्ता

कैसे टहलता है चाँद

सारा शगुफ़्ता

चराग़ जब मेरा कमरा नापता है

सारा शगुफ़्ता

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