हत्या Poetry (page 15)

मुफ़ाहमत न सिखा जब्र-ए-नारवा से मुझे

अदीम हाशमी

मैं क़त्ल हो के भी शर्मिंदा अपने-आप से हूँ

अबुल हसनात हक़्क़ी

तमाम हिज्र उसी का विसाल है उस का

अबुल हसनात हक़्क़ी

डर ख़ुदा सीं ख़ूब नईं ये वक़्त-ए-क़त्ल-ए-आम कूँ

आबरू शाह मुबारक

सैर-ए-बहार-ए-हुस्न ही अँखियों का काम जान

आबरू शाह मुबारक

क्यूँ बंद सब खुले हैं क्यूँ चीर अटपटा है

आबरू शाह मुबारक

बड़ा मुख़्लिस हूँ पाबंद-ए-वफ़ा हूँ

अब्दुल्लाह कमाल

गुदाज़-ए-आतिश-ए-ग़म सीं हुई हैं बावली अँखियाँ

अब्दुल वहाब यकरू

गल को शर्मिंदा कर ऐ शोख़ गुलिस्तान में आ

अब्दुल वहाब यकरू

ज़ुल्फ़-ए-बरहम सँभाल कर चलिए

अब्दुल हमीद अदम

होंकते दश्त में इक ग़म का समुंदर देखो

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

दुआ को हाथ मिरा जब कभी उठा होगा

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

क़ुर्ब नस नस में आग भरता है

अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद

उस से उम्मीद-ए-वफ़ा ऐ दिल-ए-नाशाद न कर

अब्दुल अलीम आसि

यूँ तो सौ तरह की मुश्किल सुख़नी आए हमें

अब्दुल अहद साज़

दश्त में प्यास बुझाते हुए मर जाते हैं

अब्बास ताबिश

जो सारे हम-सफ़र इक बार हिर्ज़-ए-जाँ कर लें

अब्बास अलवी

हमें सफ़र की अज़िय्यत से फिर गुज़रना है

आशुफ़्ता चंगेज़ी

रक़ीब क़त्ल हुआ उस की तेग़-ए-अबरू से

आग़ा अकबराबादी

तिरे जलाल से ख़ुर्शीद को ज़वाल हुआ

आग़ा अकबराबादी

बुत-ए-ग़ुंचा-दहन पे निसार हूँ मैं नहीं झूट कुछ इस में ख़ुदा की क़सम

आग़ा अकबराबादी

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