जजमेंट डे Poetry (page 1)

हिज्र

अज़ीमुद्दीन अहमद

रात-दिन लब पे न हो क्यूँकि बयान-ए-देहली

ले के दिल कहते हो उल्फ़त क्या है

तेरा अंदाज़-ए-सुख़न सब से जुदा लगता है

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

हर घड़ी क़यामत थी ये न पूछ कब गुज़री

ज़ुहूर नज़र

शजर जलते हैं शाख़ें जल रही हैं

ज़िया जालंधरी

न होगा हश्र महशर में बपा क्या

ज़ेबा

मैकनिक शाएर

ज़रीफ़ जबलपूरी

लबों की जुम्बिश नवा-ए-बुलबुल है शोख़ लहजा तिरा क़यामत

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

तिरे बग़ैर कटे दिन न शब गुज़रती है

ज़की तारिक़

बे-मकाँ मेरे ख़्वाब होने लगे

ज़की तारिक़

मुझ को सुकूँ की चैन की पज़मुर्दगी से क्या

ज़की काकोरवी

आप पर जब से तबीअत आई

ज़की काकोरवी

किस क़यामत की घुटन तारी है

ज़करिय़ा शाज़

किस क़यामत की घुटन तारी है

ज़करिय़ा शाज़

इस दर पे मुझे यार मचलने नहीं देते

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

रख दिया ख़ल्क़ ने नाम उस का क़यामत ऐ 'ज़ेब'

ज़ेब उस्मानिया

ख़ाक पर ही मिरे आँसू हैं न दामन में कहीं

ज़ेब उस्मानिया

नज़र को वुसअतें दे बिजलियों से आश्ना कर दे

ज़हीर अहमद ताज

दिल देख रहे हैं वो जिगर देख रहे हैं

ज़हीर अहमद ताज

फटा पड़ता है जोबन और जोश-ए-नौ-जवानी है

ज़हीर देहलवी

बुतों से बच के चलने पर भी आफ़त आ ही जाती है

ज़हीर देहलवी

दिल से बाहर निकल आना मिरी मजबूरी है

ज़फ़र इक़बाल

कुछ सबब ही न बने बात बढ़ा देने का

ज़फ़र इक़बाल

जैसी अब है ऐसी हालत में नहीं रह सकता

ज़फ़र इक़बाल

शो'ले से चटकते हैं हर साँस में ख़ुशबू के

ज़फ़र गौरी

पुकारता हूँ कि तुम हासिल-ए-तमन्ना हो

यूसुफ़ ज़फ़र

नौहा

यूसुफ़ राहत

किसी कशिश के किसी सिलसिले का होना था

यासमीन हबीब

चाह थी मेहर थी मोहब्बत थी

यशब तमन्ना

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