जजमेंट डे Poetry (page 2)

हक़ मुझे बातिल-आशना न करे

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

बहस तो अपनी ही नहीं

यहया अमजद

जो अदू-ए-बाग़ हो बरबाद हो

वज़ीर अली सबा लखनवी

अश्क-उफ़्तादा नज़र आते हैं सारे दरिया

वज़ीर अली सबा लखनवी

रंग और रूप से जो बाला है

वज़ीर आग़ा

बहुत अच्छा हुआ आँसू न निकले मेरी आँखों से

वासिफ़ देहलवी

किसी के इश्क़ का ये मुस्तक़िल आज़ार क्या कहना

वासिफ़ देहलवी

कभी दर्द-आश्ना तेरा भी क़ल्ब शादमाँ होगा

वासिफ़ देहलवी

बयाँ ऐ हम-नशीं ग़म की हिकायत और हो जाती

वासिफ़ देहलवी

शरीर तेरी तरह आँख भी तिरी होगी

वसीम ख़ैराबादी

मौत आई मुझे कूचे में तिरे जाने से

वसीम ख़ैराबादी

जाए आशिक़ की बला हश्र में क्या रक्खा है

वसीम ख़ैराबादी

हम ने उस शोख़ की रानाई क़ामत देखी

वसीम ख़ैराबादी

ग़ैर-मुमकिन था ये इक काम मगर हम ने किया

वक़ार वासिक़ी

मज़ा था हम को जो बुलबुल से दू-बदू करते

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

काबा जाने की हवस शैख़ हमें भी है वले

वलीउल्लाह मुहिब

वहीं जी उठते हैं मुर्दे ये क्या ठोकर से छूना है

वलीउल्लाह मुहिब

उस बुत ने गुलाबी जो उठा मुँह से लगाई

वलीउल्लाह मुहिब

शब न ये सर्दी से यख़-बस्ता ज़मीं हर तर्फ़ है

वलीउल्लाह मुहिब

दिला ये मय-कदा-ए-इश्क़ है शराब तू पी

वलीउल्लाह मुहिब

अश्क-बारी का मिरी आँखों ने ये बाँधा है झाड़

वलीउल्लाह मुहिब

पीर हो शैख़ हुआ है देखो तिफ़्लों का मुरीद

वली उज़लत

ख़ुनुक-जोशी न करते जूँ सबा गर ये बुताँ हम से

वली उज़लत

ख़ुदा किसी कूँ किसी साथ आश्ना न करे

वली उज़लत

हँसूँ जूँ गुल तिरे ज़ख़्मों से उल्फ़त इस को कहते हैं

वली उज़लत

घर यार का हम से दूर पड़ा गई हम से राहत एक तरफ़

वली उज़लत

राह-ए-मज़मून-ए-ताज़ा बंद नहीं

वली मोहम्मद वली

दिल हुआ है मिरा ख़राब-ए-सुख़न

वली मोहम्मद वली

चाहतों की जो दिल को आदत है

वजद चुगताई

लबरेज़-ए-हक़ीक़त गो अफ़साना-ए-मूसा है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

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