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ऐ अब्र-ए-इल्तिफ़ात तिरा ए'तिबार फिर

अकरम नक़्क़ाश

यादें

अख़्तर-उल-ईमान

सब्ज़ा-ए-बेगाना

अख़्तर-उल-ईमान

ये हम से पूछते हो रंज-ए-इम्तिहाँ क्या है

अख़्तर सईद ख़ान

बदन से रिश्ता-ए-जाँ मो'तबर न था मेरा

अकबर हैदराबादी

हंगामा क्यूँ बपा है ज़रा बाम पर से देख

आजिज़ मातवी

तू बिगड़ता भी है ख़ास अपने ही अंदाज़ के साथ

अहमद नदीम क़ासमी

हर लम्हा अगर गुरेज़-पा है

अहमद नदीम क़ासमी

काफ़िर हूँ सर-फिरा हूँ मुझे मार दीजिए

अहमद फ़रहाद

उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ

अहमद फ़राज़

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं

अहमद फ़राज़

सलफ़ से लोग उन पे मर रहे हैं हमेशा जानें लिया करेंगे

आग़ा हज्जू शरफ़

हम हैं ऐ यार चढ़ाए हुए पैमाना-ए-इश्क़

आग़ा हज्जू शरफ़

हज़ीमतें जो फ़ना कर गईं ग़ुरूर मिरा

आफ़ताब इक़बाल शमीम

कुछ रब्त-ए-ख़ास अस्ल का ज़ाहिर के साथ है

आफ़ताब हुसैन

धूप जब ढल गई तो साया नहीं

आफ़ताब हुसैन

देखे कोई तअल्लुक़-ए-ख़ातिर के रंग भी

आफ़ताब हुसैन

ठोकर से फ़क़ीरों की दुनिया का बिखर जाना

अफ़रोज़ आलम

शबनम की तरह सुब्ह की आँखों में पड़ा है

अफ़रोज़ आलम

जो चीज़ थी कमरे में वो बे-रब्त पड़ी थी

आदिल मंसूरी

वो जो तर्क-ए-रब्त का अहद था कहीं टूटने तो नहीं लगा

अदीम हाशमी

उसी एक फ़र्द के वास्ते मिरे दिल में दर्द है किस लिए

अदीम हाशमी

तेग़-ए-जफ़ा को तेरी नहीं इम्तिहाँ से रब्त

अबू ज़ाहिद सय्यद यहया हुसैनी क़द्र

शाम से मिलने गया तो रात ने ठहरा लिया

अबरार हामिद

कहीं पर सुब्ह रखता हूँ कहीं पर शाम रखता हूँ

अबरार अहमद

न जाने रब्त-ए-मसर्रत है किस क़दर ग़म से

आबिद नामी

कश्ती चला रहा है मगर किस अदा के साथ

अब्दुल हमीद अदम

जबीन-ए-शौक़ को कुछ और भी इज़्न-ए-सआदत दे

अब्दुल अलीम आसि

पस-ए-तक़रीब-ए-मुलाक़ात

अब्दुल अहद साज़

खिले हैं फूल की सूरत तिरे विसाल के दिन

अब्दुल अहद साज़

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