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तुम अच्छे मसीहा हो दवा क्यूँ नहीं देते

एहसान जाफ़री

बहुत मुश्किल है तर्क-ए-आरज़ू रब्त-आश्ना हो कर

दर्शन सिंह

बाग़-ए-जहाँ के गुल हैं या ख़ार हैं तो हम हैं

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

खुलता नहीं है राज़ हमारे बयान से

दाग़ देहलवी

क़रार खो के चले बे-क़रार हो के चले

चरख़ चिन्योटी

क़रार खो के चले बे-क़रार हो के चले

चरख़ चिन्योटी

तुझ से तसव्वुरात में ऐ जान-ए-आरज़ू

ब्रहमा नन्द जलीस

मुश्किल

बिलाल अहमद

सवाब है या किसी जनम का हिसाब कोई चुका रहा हूँ

भारत भूषण पन्त

शिकवा सुन कर जो मिज़ाज-ए-बुत-ए-बद-ख़ू बदला

बेखुद बदायुनी

फ़रिश्ते देख रहे हैं ज़मीन ओ चर्ख़ का रब्त

बेकल उत्साही

नज़र की फ़त्ह कभी क़ल्ब की शिकस्त लगे

बेकल उत्साही

मैं जब भी कोई अछूता कलाम लिखता हूँ

बेकल उत्साही

चश्म-ए-हसीं में है न रुख़-ए-फ़ित्ना-गर में है

बहज़ाद लखनवी

फूलों में ग़ज़ल रखना ये रात की रानी है

बशीर बद्र

पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है

बशीर बद्र

शाम ढलते ही ये आलम है तो क्या जाने बशीर

बशीर अहमद बशीर

क़र्या क़र्या ख़ाक उड़ाई कूचा-गर्द फ़क़ीर हुए

बशीर अहमद बशीर

जी नहीं लगता किताबों में किताबें क्या करें

बशीर अहमद बशीर

दाद-गर

अज़ीज़ क़ैसी

उलझाओ का मज़ा भी तिरी बात ही में था

अज़ीज़ क़ैसी

परिंदे झील पर इक रब्त-ए-रूहानी में आए हैं

अज़ीज़ नबील

सुलग रहा है उफ़ुक़ बुझ रही है आतिश-ए-महर

अज़ीज़ हामिद मदनी

ख़लल-पज़ीर हुआ रब्त-ए-मेहर-ओ-माह में वक़्त

अज़ीज़ हामिद मदनी

करम का और है इम्काँ खुले तो बात चले

अज़ीज़ हामिद मदनी

एक ही शहर में रहते बस्ते काले कोसों दूर रहा

अज़ीज़ हामिद मदनी

दिलों की उक़्दा-कुशाई का वक़्त है कि नहीं

अज़ीज़ हामिद मदनी

मैं फूट फूट के रोई मगर मिरे अंदर

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

अब कोई और मुसीबत तो न पाली जाए

औरंगज़ेब

ख़दशे थे शाम-ए-हिज्र के सुब्ह-ए-ख़ुशी के साथ

औलाद अली रिज़वी

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