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एक लम्हा

शाहिद माहुली

अजीब लोग

शाहिद माहुली

ये जो रब्त रू-ब-ज़वाल है ये सवाल है

शाहिद लतीफ़

है दिल को मेरे आरिज़-ए-जानाँ से इर्तिबात

शाह आसिम

लहू पुकार के चुप है ज़मीन बोलती है

सीन शीन आलम

टलने के नहीं अहल-ए-वफ़ा ख़ौफ़-ए-ज़ियाँ से

सीमाब ज़फ़र

खो कर तिरी गली में दिल-ए-बे-ख़बर को मैं

सीमाब अकबराबादी

हम तो मौजूद थे रातों में उजालों की तरह

सरवर अरमान

कुछ लोग रब्त-ए-ख़ास से आगे निकल गए

सरफ़राज़ शाहिद

एक मुद्दत में बढ़ाया तू ने रब्त

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

उन बुतों से रब्त तोड़ा चाहिए

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

ज़ब्त की हद से गुज़र कर ख़ार तो होना ही था

सलीम शुजाअ अंसारी

बे-वज़्अ शब-ओ-रोज़ की तस्वीर दिखा कर

सलीम शाहिद

साथ उस के रह सके न बग़ैर उस के रह सके

सलीम अहमद

मजबूरियों का पास भी कुछ था वफ़ा के साथ

सलीम अहमद

ख़ुद अपनी लौ में था मेहराब-ए-जाँ में जलता था

सलीम अहमद

इश्क़ और नंग-ए-आरज़ू से आर

सलीम अहमद

पीतल का साँप

सलाम मछली शहरी

रात कई दिनों से ग़ाएब थी

सलाहुद्दीन परवेज़

तुझे मैं मिलूँ तो कहाँ मिलूँ मिरा तुझ से रब्त मुहाल है

सज्जाद बाक़र रिज़वी

बे-दिली वो है कि मरने की तमन्ना भी नहीं

सज्जाद बाक़र रिज़वी

पहले जो हम चले तो फ़क़त यार तक चले

साइम जी

आँखों को ख़्वाब-नाक बनाना पड़ा मुझे

साइम जी

तुम्हारे ब'अद ख़ुदा जाने क्या हुआ दिल को

सैफ़ुद्दीन सैफ़

फ़रार

साहिर लुधियानवी

किस तसव्वुर के तहत रब्त की मंज़िल में रहा

साहिल अहमद

नौ-ब-नौ एक उमडता हुआ तूफ़ान था मैं

साहिल अहमद

दिलों का हाल तो ये है कि रब्त है न गुरेज़

सहर अंसारी

विसाल-ओ-हिज्र से वाबस्ता तोहमतें भी गईं

सहर अंसारी

न दोस्ती से रहे और न दुश्मनी से रहे

सहर अंसारी

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