रफ़्तगाँ Poetry (page 3)

उठिए कि फिर ये मौक़ा हाथों से जा रहेगा

अहमद महफ़ूज़

उठ जा कि अब ये मौक़ा हाथों से जा रहेगा

अहमद महफ़ूज़

कल हम ने बज़्म-ए-यार में क्या क्या शराब पी

अहमद फ़राज़

अब शौक़ से कि जाँ से गुज़र जाना चाहिए

अहमद फ़राज़

तुम जो आ जाओ ग़म धुआँ हो जाए

अहमद अशफ़ाक़

दुआ की राख पे मरमर का इत्र-दाँ उस का

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

क़दम क़दम पे किसी इम्तिहाँ की ज़द में है

आफ़ताब हुसैन

ज़मीं नहीं ये मिरी आसमाँ नहीं मेरा

अबरार अहमद

न मोहतसिब की न हूर-ओ-जिनाँ की बात करो

अब्दुल मजीद सालिक

जो मुश्त-ए-ख़ाक हो उस ख़ाक-दाँ की बात करो

अब्दुल मजीद सालिक

शजर समझ के मिरा एहतिराम करते हैं

अब्बास ताबिश

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