रफ़्तगाँ Poetry (page 2)

निकल कर साया-ए-अब्र-ए-रवाँ से

रसा चुग़ताई

कोई ता'मीर की सूरत निकालो

रसा चुग़ताई

सैर-ए-शब-ए-ला-मकाँ और मैं

राजेन्द्र मनचंदा बानी

दिल के पर्दे पे चेहरे उभरते रहे मुस्कुराते रहे और हम सो गए

इरफ़ान सत्तार

हमारे दिन गुज़र गए

इलियास बाबर आवान

हम अपने रफ़्तगाँ को याद रखना चाहते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

हम अपने रफ़्तगाँ को याद रखना चाहते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

फ़ज़ा में वहशत-ए-संग-ओ-सिनाँ के होते हुए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

गुल-बाँग थी गुलों की हमारा तराना था

हातिम अली मेहर

हुआ है सामने आँखों के ख़ानदाँ आबाद

हमदम कशमीरी

मोहब्बत का तिरी बंदा हर इक को ऐ सनम पाया

हैदर अली आतिश

मैं वो बस्ती हूँ कि याद-ए-रफ़्तगाँ के भेस में

हफ़ीज़ जालंधरी

है अज़ल की इस ग़लत बख़्शी पे हैरानी मुझे

हफ़ीज़ जालंधरी

अब याद-ए-रफ़्तगाँ की भी हिम्मत नहीं रही

फ़िराक़ गोरखपुरी

कहीं से नीले कहीं से काले पड़े हुए हैं

फ़ाज़िल जमीली

अब आ गए हो तो रफ़्तगाँ को भी याद रखना

फ़य्याज़ तहसीन

हर-चंद मेरे हाल से वो बे-ख़बर नहीं

बासिर सुल्तान काज़मी

उन्हें मुझ से शिकायत है

अज़रा नक़वी

करो तलाश हद-ए-आसमाँ मिलने न मिले

अज़ीज़ तमन्नाई

रंग सारे अपने अंदर रफ़्तगाँ के हैं

असलम महमूद

बुझ गए मंज़र उफ़ुक़ पर हर निशाँ मद्धम हुआ

असलम महमूद

ऐ मिरे ग़ुबार-ए-सर तू ही तो नहीं तन्हा राएगाँ तो मैं भी हूँ

असलम महमूद

भूले हुए हैं सब कि है कार-ए-जहाँ बहुत

अासिफ़ जमाल

ये लोग ढूँड रहे हैं यहाँ वहाँ मुझ को

अशफ़ाक़ नासिर

जो लोग रातों को जागते थे

असअ'द बदायुनी

इसी ज़मीं पे इसी आसमाँ में रहना है

अनीस अशफ़ाक़

हमेशा किसी इम्तिहाँ में रहा

अनीस अशफ़ाक़

ग़ुबार-ए-दश्त-ए-तलब में हैं रफ़्तगाँ क्या क्या

अमजद इस्लाम अमजद

ग़ुरूर-ए-पास-ए-रिवायत बदल के रख दूँगा

अख़्तर रज़ा अदील

ख़्वाब के फूलों की ताबीरें कहानी हो गईं

अहमद मुश्ताक़

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