संबंध Poetry (page 4)

आज उस बज़्म में यूँ दाद-ए-वफ़ा दी जाए

शकील ग्वालिआरी

जाने कैसा रिश्ता है रहगुज़र का क़दमों से

शकील आज़मी

तवील हिज्र है इक मुख़्तसर विसाल के बा'द

शकील आज़मी

राज़ में रख तिरी रुस्वाई का क़िस्सा मैं हूँ

शकील आज़मी

हर घड़ी चश्म-ए-ख़रीदार में रहने के लिए

शकील आज़मी

ख़ाक से उठना ख़ाक में सोना ख़ाक को बंदा भूल गया

शाइस्ता मुफ़्ती

चाँद-सूरज न सही एक दिया हूँ मैं भी

शाइक़ मुज़फ़्फ़रपुरी

ये भी सच है कि नहीं है कोई रिश्ता तुझ से

शहज़ाद अहमद

यादों की ज़ंजीरें

शहज़ाद अहमद

ये भी सच है कि नहीं है कोई रिश्ता तुझ से

शहज़ाद अहमद

ये जब है कि इक ख़्वाब से रिश्ता है हमारा

शहरयार

ये जब है कि इक ख़्वाब से रिश्ता है हमारा

शहरयार

मोम के जिस्मों वाली इस मख़्लूक़ को रुस्वा मत करना

शहरयार

भूली-बिसरी यादों की बारात नहीं आई

शहरयार

दिल भी दाग़-ए-नक़्श-ए-कुहन से बुझा हुआ था

शहनवाज़ ज़ैदी

वार हुआ कुछ इतना गहरा पानी का

शाहिद मीर

कोई लहजा कोई जुमला कोई चेहरा निकल आया

शाहिद लतीफ़

नींद से आँख खुली है अभी देखा क्या है

शाहिद कबीर

हर परी-वश का ए'तिबार करो

शाहिद इश्क़ी

उस ने मुझ से तो कुछ कहा ही नहीं

शाहबाज़ रिज़्वी

मुश्किल तो न था ऐसा भी अफ़्लाक से रिश्ता

शहबाज़ ख़्वाजा

इक ऐसा वक़्त भी सहरा में आने वाला है

शहबाज़ ख़्वाजा

बना कर मन को मनका और रग-ए-तन के तईं रिश्ता

शाह नसीर

जूँ ज़र्रा नहीं एक जगह ख़ाक-नशीं हम

शाह नसीर

हुआ अश्क-ए-गुलगूँ बहार-ए-गरेबाँ

शाह नसीर

दिल को किस सूरत से कीजे चश्म-ए-दिलबर से जुदा

शाह नसीर

ज़िंदगी तुझ से हमें अब कोई शिकवा ही नहीं

शफ़ीक़ देहलवी

मिरी बे-रिश्ता-दिली से उसे मज़ा मिल जाए

शाद लखनवी

यही सुलूक मुनासिब है ख़ुश-गुमानों से

शबनम रूमानी

ज़ब्त-ए-नावक-ए-ग़म से बात बन तो सकती है

शाद आरफ़ी

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