रोक Poetry (page 1)

प्यार के खट्टे-मीठे नामे वो लिखती है मैं पढ़ता हूँ

बशीर दादा

अफ़्सोस तुम्हें कार के शीशे का हुआ है

हबीब जालिब

शहर-ए-आलाम का शहरयार आ गया

दर्द की शाख़ पे इक ताज़ा समर आ गया है

ज़िया ज़मीर

अब ये आँखें किसी तस्कीन से ताबिंदा नहीं

ज़िया जालंधरी

नज़्म

ज़ीशान साहिल

किताबी कीड़े

ज़ीशान साहिल

मुझ से ऐसे वामांदा-ए-जाँ को बिस्तर-विस्तर क्या

ज़ेब ग़ौरी

थकना भी लाज़मी था कुछ काम करते करते

ज़फ़र इक़बाल

लहर की तरह किनारे से उछल जाना है

ज़फ़र इक़बाल

है और बात बहुत मेरी बात से आगे

ज़फ़र इक़बाल

मैं और तू

वज़ीर आग़ा

जबीं-ए-संग पे लिक्खा मिरा फ़साना गया

वज़ीर आग़ा

वहाँ हमारा कोई मुंतज़िर नहीं फिर भी

वाली आसी

दिन भर ग़मों की धूप में चलना पड़ा मुझे

वाली आसी

ब-रंग-ए-नग़मा बिखर जाना चाहते हैं हम

वाली आसी

'वहीद' कार-ए-सियासत है कार-ए-बे-काराँ

वहीद क़ुरैशी

जिधर निगाह उठी खिंच गई नई दीवार

वहीद क़ुरैशी

बिछड़े हुए ख़्वाब आ के पकड़ लेते हैं दामन

वहीद अख़्तर

सहराओं में दरिया भी सफ़र भूल गया है

वहीद अख़्तर

हम कभी ख़ुद से कोई बात नहीं कर पाते

उषा भदोरिया

आ गई धूप मिरी छाँव के पीछे पीछे

तौक़ीर रज़ा

एक तस्वीर जलानी है अभी

तारिक़ क़मर

तरीक़ कोई न आया मुझे ज़माने का

तनवीर अंजुम

मौज-ए-ख़ूँ सर से गुज़रती है गुज़र जाने दो

तबस्सुम रिज़वी

जोश पर थीं सिफ़त-ए-अब्र-ए-बहारी आँखें

तअशशुक़ लखनवी

उस के होंटों पर सुर महका करते हैं

स्वप्निल तिवारी

मेरी रुस्वाई का यूँ जश्न मनाया तुम ने

सिया सचदेव

न कुरेदूँ इश्क़ के राज़ को मुझे एहतियात-ए-कलाम है

सिराज लखनवी

हर लग़्ज़िश-ए-हयात पर इतरा रहा हूँ मैं

सिराज लखनवी

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