रोक Poetry (page 3)

बात फूलों की सुना करते थे

साग़र सिद्दीक़ी

जनाज़ा रोक कर मेरा वो इस अंदाज़ से बोले

सफ़ी लखनवी

इजाज़त

सईदुद्दीन

अल्फ़ाज़ की विलादत

सादिक़

यहाँ है धूप वहाँ साए हैं चले जाओ

साबिर ज़फ़र

ये किस हसीन ने लोगों को रोक रक्खा है

रूही कंजाही

थी ज़र्फ़-ए-वज़ू में कोई शय पी गए क्या आप

रियाज़ ख़ैराबादी

रास्ता रोक के कह लूँगा जो कहना है मुझे

रिन्द लखनवी

जुज़ और क्या किसी से है झगड़ा फ़क़ीर का

राशिद अमीन

उस के नाम जिसे तारीकी निगल चुकी

इंजिला हमेश

अन-देखी ज़मीं पर

इंजिला हमेश

झुलसी सी इक बस्ती में

इब्न-ए-इंशा

जल्वा-नुमाई बे-परवाई हाँ यही रीत जहाँ की है

इब्न-ए-इंशा

और तो कोई बस न चलेगा हिज्र के दर्द के मारों का

इब्न-ए-इंशा

फ़सील शहर की इतनी बुलंद ओ सख़्त हुई

हुमैरा रहमान

एक दिया कब रोक सका है रात को आने से

हसन अकबर कमाल

क्या होता है ख़िज़ाँ बहार के आने जाने से

हसन अकबर कमाल

कल शब क़सम ख़ुदा की बहुत डर लगा हमें

हसन अब्बास रज़ा

उस पल से

हामिदी काश्मीरी

दिन को न घर से जाइए लगता है डर मुझे

हामिद जीलानी

शब-ए-विसाल ये कहते हैं वो सुना के मुझे

हफ़ीज़ जौनपुरी

आग़ाज़-ए-मोहब्बत में बरसों यूँ ज़ब्त से हम ने काम लिया

हफ़ीज़ जौनपुरी

आग़ाज़-ए-मोहब्बत में बरसों यूँ ज़ब्त से हम ने काम लिया

हफ़ीज़ जौनपुरी

अभी तो मैं जवान हूँ

हफ़ीज़ जालंधरी

कोई दवा न दे सके मशवरा-ए-दुआ दिया

हफ़ीज़ जालंधरी

सिद्धार्थ की एक रात

गुलज़ार

किसी से ख़्वाब का चर्चा न करना

गिरिजा व्यास

एक ज़ाती नज़्म

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

तेरे दर पर मक़ाम रखते हैं

ग़ुलाम मौला क़लक़

नहीं अब रोक पाएगी फ़सील-ए-शहर पानी को

ग़ुलाम हुसैन साजिद

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