रास्ता रोक के कह लूँगा जो कहना है मुझे
क्या मिलोगे न कभी राह में आते जाते
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यार आया है अहवाल-ए-दिल-ए-ज़ार दिखाओ
ज़माने में वो मह-लक़ा एक है
न अंगिया न कुर्ती है जानी तुम्हारी
अपने मरने का अगर रंज मुझे है तो ये है
शौक़-ए-नज़्ज़ारा-ए-दीदार में तेरे हमदम
लाला-रूयों से कब फ़राग़ रहा
चढ़ी तेरे बीमार-ए-फ़ुर्क़त को तब है
मय पिला ऐसी कि साक़ी न रहे होश मुझे
छुप के घर ग़ैर के जाया न करो
मय-कश हूँ वो कि पूछता हूँ उठ के हश्र में
मुज़्दा-बाद ऐ बादा-ख़्वारो दौर-ए-वाइज़ हो चुका
ख़ाक छनवाती है दीवानों से अपने मुद्दतों