रिंदान-ए-इश्क़ छुट गए मज़हब की क़ैद से
घंटा रहा गले में न ज़ुन्नार रह गया
Wasi Shah
Javed Akhtar
Rahat Indori
Gulzar
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(555) Peoples Rate This
काफ़िर हूँ न फूँकूँ जो तिरे काबे में ऐ शैख़
नाज़-ए-बेजा उठाइए किस से
हूर पर आँख न डाले कभी शैदा तेरा
रास्ता रोक के कह लूँगा जो कहना है मुझे
आँख से क़त्ल करे लब से जलाए मुर्दे
इमसाल फ़स्ल-ए-गुल में वो फिर चाक हो गए
दीद-ए-गुलज़ार-ए-जहाँ क्यूँ न करें सैर तो है
क्या सुन चुके हैं आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार हाथ
आ अंदलीब मिल के करें आह-ओ-ज़ारियाँ
हों वो काफ़िर कि मुसलामानों ने अक्सर मुझ को
ऐ परी हुस्न तिरा रौनक़-ए-हिंदुस्ताँ है
दिल-लगी ग़ैरों से बे-जा है मिरी जाँ छोड़ दे