हूर पर आँख न डाले कभी शैदा तेरा
सब से बेगाना है ऐ दोस्त शनासा तेरा
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मुँह न ढाँको अब तो सूरत देख ली
चलती रही उस कूचे में तलवार हमेशा
इश्क़ कुछ आप पे मौक़ूफ़ नहीं ख़ुश रहिए
मुज़्दा-बाद ऐ बादा-ख़्वारो दौर-ए-वाइज़ हो चुका
खुली है कुंज-ए-क़फ़स में मिरी ज़बाँ सय्याद
फेर लाता है ख़त-ए-शौक़ मिरा हो के तबाह
था मुक़द्दम इश्क़-ए-बुत इस्लाम पर तिफ़्ली में भी
दीवानों से कह दो कि चली बाद-ए-बहारी
दीद-ए-लैला के लिए दीदा-ए-मजनूँ है ज़रूर
बस अब आप तशरीफ़ ले जाइए
नाज़-ए-बेजा उठाइए किस से
किसी का कोई मर जाए हमारे घर में मातम है