बस अब आप तशरीफ़ ले जाइए
जो गुज़रेगी मुझ पर गुज़र जाएगी
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उल्फ़त न करूँगा अब किसी की
फिर वही कुंज-ए-क़फ़स है वही सय्याद का घर
यार आया है अहवाल-ए-दिल-ए-ज़ार दिखाओ
अगरी का है गुमाँ शक है मलागीरी का
लाएगी गर्दिश में तुझ को भी मिरी आवारगी
इश्क़ कुछ आप पे मौक़ूफ़ नहीं ख़ुश रहिए
शौक़-ए-नज़्ज़ारा-ए-दीदार में तेरे हमदम
आदमी पहचाना जाता है क़याफ़ा देख कर
मय पिला ऐसी कि साक़ी न रहे होश मुझे
करीम जो मुझे देता है बाँट खाता हूँ
आलम-पसंद हो गई जो बात तुम ने की