मय पिला ऐसी कि साक़ी न रहे होश मुझे
एक साग़र से दो आलम हों फ़रामोश मुझे
Rahat Indori
Gulzar
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(547) Peoples Rate This
आज इंकार न फ़रमाइए आप
वक़ार-ए-शाह-ए-ज़विल-इक्तदार देख चुके
दिल किस से लगाऊँ कहीं दिलबर नहीं मिलता
नहीं क़ौल से फ़ेल तेरे मुताबिक़
ऐ जुनूँ तू ही छुड़ाए तो छुटूँ इस क़ैद से
सातों फ़लक किए तह-ओ-बाला निकल गया
बरहना देख कर आशिक़ में जान-ए-ताज़ा आती है
बुत करें आरज़ू ख़ुदाई की
हैरान सी है भचक रही है
ख़ामोश दाब-ए-इश्क़ को बुलबुल लिए हुए
रिंदान-ए-इश्क़ छुट गए मज़हब की क़ैद से
चलती रही उस कूचे में तलवार हमेशा