लाएगी गर्दिश में तुझ को भी मिरी आवारगी
कू-ब-कू मैं हूँ तो तू भी दर-ब-दर हो जाएगा
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फिर वही कुंज-ए-क़फ़स है वही सय्याद का घर
तौबा का पास रिंद-ए-मय-आशाम हो चुका
मुँह न ढाँको अब तो सूरत देख ली
आ अंदलीब मिल के करें आह-ओ-ज़ारियाँ
न अंगिया न कुर्ती है जानी तुम्हारी
बस अब आप तशरीफ़ ले जाइए
अगरी का है गुमाँ शक है मलागीरी का
क्या सुन चुके हैं आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार हाथ
था मुक़द्दम इश्क़-ए-बुत इस्लाम पर तिफ़्ली में भी
मुझ बला-नोश को तलछट भी है काफ़ी साक़ी
लाला-रूयों से कब फ़राग़ रहा
ऐ शब-ए-फ़ुर्क़त न कर मुझ पर अज़ाब