रुतबा-ए-कुफ़्र है किस बात में कम ईमाँ से
शौकत-ए-काबा तो है शान-ए-कलीसा देखो
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Wasi Shah
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Anwar Masood
Habib Jalib
Gulzar
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(490) Peoples Rate This
हिज्र की शब हाथ में ले कर चराग़-ए-माहताब
तू आप को पोशीदा ओ इख़्फ़ा न समझना
जलन दिल की लिक्खें जो हम दिल-जले
मज़ा पड़ा है क़नाअत का अहद-ए-तिफ़्ली से
आज इंकार न फ़रमाइए आप
वादे पे तुम न आए तो कुछ हम न मर गए
ख़ाक छनवाती है दीवानों से अपने मुद्दतों
मुझ बला-नोश को तलछट भी है काफ़ी साक़ी
था मुक़द्दम इश्क़-ए-बुत इस्लाम पर तिफ़्ली में भी
नाज़-ए-बेजा उठाइए किस से
क़ब्र पर होवें दो न चार दरख़्त
दीवानों से कह दो कि चली बाद-ए-बहारी