हिज्र की शब हाथ में ले कर चराग़-ए-माहताब
ढूँढता फिरता हूँ गर्दूं पर सहर मिलती नहीं
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ऐ परी हुस्न तिरा रौनक़-ए-हिंदुस्ताँ है
आ अंदलीब मिल के करें आह-ओ-ज़ारियाँ
हैरान सी है भचक रही है
मुँह न ढाँको अब तो सूरत देख ली
छुप के घर ग़ैर के जाया न करो
रास्ता रोक के कह लूँगा जो कहना है मुझे
सातों फ़लक किए तह-ओ-बाला निकल गया
मुझ बला-नोश को तलछट भी है काफ़ी साक़ी
वादे पे तुम न आए तो कुछ हम न मर गए
आफ़त शब-ए-तन्हाई की टल जाए तो अच्छा
साइलाना उन के दर पर जब मिरा जाना हुआ
वक़ार-ए-शाह-ए-ज़विल-इक्तदार देख चुके