रोक Poetry (page 4)

जुदाई

फ़िराक़ गोरखपुरी

कहानी हो कोई भी तेरा क़िस्सा हो ही जाती है

फ़य्याज़ फ़ारुक़ी

राह-ए-गुम-कर्दा सर-ए-मंज़िल भटक कर आ गया

फ़र्रुख़ जाफ़री

फ़रार हो गई होती कभी की रूह मिरी

फ़रहत एहसास

एक रात वो गया था जहाँ बात रोक के

फ़रहत एहसास

कभी ख़ुदा कभी इंसान रोक लेता है

फ़रहत एहसास

वो मेरे बारे में ऐसे भी सोचता कब था

फ़रह इक़बाल

ग़ज़लें लिख लिख पागल होने वाला हूँ

फख़्र अब्बास

गिरानी-ए-शब-ए-हिज्राँ दो-चंद क्या करते

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

लैला मजनूँ की शादी

दिलावर फ़िगार

सुनहरी मछली

दीप्ति मिश्रा

पुकारती है ख़मोशी मिरी फ़ुग़ाँ की तरह

दाग़ देहलवी

दीद की तमन्ना में आँख भर के रोए थे

भारत भूषण पन्त

दिल में फिर वस्ल के अरमान चले आते हैं

बेख़ुद देहलवी

उन्हीं रास्तों ने जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे

बशीर बद्र

ये चराग़ बे-नज़र है ये सितारा बे-ज़बाँ है

बशीर बद्र

तू नहीं तो तेरा दर्द-ए-जाँ-फ़ज़ा मिल जाएगा

बाक़ी अहमदपुरी

तर्सील

बलराज कोमल

रुख़ जो ज़ेर-ए-सुंबल-ए-पुर-पेच-ओ-ताब आ जाएगा

ज़फ़र

नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा

ज़फ़र

दिन

अज़रा अब्बास

ख़्वाहिश-ओ-ख़ाब के आगे भी कहीं जाना है

अज़ीम हैदर सय्यद

अन-गिनत अज़ाब हैं रतजगों के दरमियाँ

अतीक़ुर्रहमान सफ़ी

मजबूरियाँ

असरार-उल-हक़ मजाज़

नए पैकर नए साँचे में ढलना चाहता हूँ मैं

असलम महमूद

अब रात आ रही है

असलम इमादी

जाने वाले को कहाँ रोक सका है कोई

असलम अंसारी

मैं ने रोका भी नहीं और वो ठहरा भी नहीं

असलम अंसारी

तज़लील

आसिफ़ रज़ा

सहरा से भी वीराँ मिरा घर है कि नहीं है

अासिफ़ जमाल

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